ताज था मंदिर: संस्कृति मंत्रालय से10 अगस्त तक जवाब तलब
आगरा
विश्व प्रसिद्ध ताजमहल दरअसल एक शिव मंदिर हुआ करता था...इसका दावा करने वाली याचिका शनिवार को अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायधीश को ट्रांसफर कर दी गई।
याचिका छह वकीलों द्वारा दायर की गई है। इन्हीं में से एक वकील राजेश कुलेष्त्र ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि कोर्ट ने मामले में दूसरे बचाव पक्ष संस्कृति मंत्रालय से 10 अगस्त तक उनका जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। उन्होंने बताया कि एक बार सभी बचाव पक्षों द्वारा जवाब दाखिल किए जाने के बाद वे कोर्ट में उसका प्रत्युत्तर दाखिल करेंगे।
इससे पहले 15 जुलाई को आर्कियॉलजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) ने याचिकाकर्ताओं के उस दावे को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने ताजमहल के एक शिव मंदिर होने की बात कही थी।
हालांकि केंद्र सरकार के विधि सलाहकार का कहना है कि प्राचीन धरोहर और पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम की धारा 20 (ओ) के तहत इस मामले की सुनवाई जिला अदालत नहीं कर सकता है। इसके अलावा विवादित ऑब्जेक्ट की कीमत 5 लाख से ज्यादा होने के कारण भी इस पर सुनवाई सीनियर सिविल जज नहीं कर सकता है।
एएसआई को पूरी उम्मीद है कि यह मामला टिक नहीं पाएगा और याचिकाकर्ताओं को हर्जाना भी देना
होगा, साथ ही उसने दोहराया है कि वहां कभी कोई शिवमंदिर नहीं था।
गौरतलब है कि अप्रैल 2015 में जिला अदालत ने छह वकीलों द्वारा दायर एक याचिका को सुनवाई के लिए मंजूरी दी थी, जिसमें ताजमहल के वास्तव में एक शिव मंदिर होने का दावा किया गया था। इसी तथ्य के आधार पर याचिकाकर्ताओं ने हिंदुओं को भी ताजमहल में प्रार्थना का अधिकार दिए जाने की मांग की थी।
याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में केंद्र, एएसआई, संस्कृति मंत्रालय और गृह सचिव से जवाब मांगा था।
विश्व प्रसिद्ध ताजमहल दरअसल एक शिव मंदिर हुआ करता था...इसका दावा करने वाली याचिका शनिवार को अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायधीश को ट्रांसफर कर दी गई।
याचिका छह वकीलों द्वारा दायर की गई है। इन्हीं में से एक वकील राजेश कुलेष्त्र ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि कोर्ट ने मामले में दूसरे बचाव पक्ष संस्कृति मंत्रालय से 10 अगस्त तक उनका जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। उन्होंने बताया कि एक बार सभी बचाव पक्षों द्वारा जवाब दाखिल किए जाने के बाद वे कोर्ट में उसका प्रत्युत्तर दाखिल करेंगे।
इससे पहले 15 जुलाई को आर्कियॉलजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) ने याचिकाकर्ताओं के उस दावे को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने ताजमहल के एक शिव मंदिर होने की बात कही थी।
हालांकि केंद्र सरकार के विधि सलाहकार का कहना है कि प्राचीन धरोहर और पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम की धारा 20 (ओ) के तहत इस मामले की सुनवाई जिला अदालत नहीं कर सकता है। इसके अलावा विवादित ऑब्जेक्ट की कीमत 5 लाख से ज्यादा होने के कारण भी इस पर सुनवाई सीनियर सिविल जज नहीं कर सकता है।
एएसआई को पूरी उम्मीद है कि यह मामला टिक नहीं पाएगा और याचिकाकर्ताओं को हर्जाना भी देना
होगा, साथ ही उसने दोहराया है कि वहां कभी कोई शिवमंदिर नहीं था।
गौरतलब है कि अप्रैल 2015 में जिला अदालत ने छह वकीलों द्वारा दायर एक याचिका को सुनवाई के लिए मंजूरी दी थी, जिसमें ताजमहल के वास्तव में एक शिव मंदिर होने का दावा किया गया था। इसी तथ्य के आधार पर याचिकाकर्ताओं ने हिंदुओं को भी ताजमहल में प्रार्थना का अधिकार दिए जाने की मांग की थी।
याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में केंद्र, एएसआई, संस्कृति मंत्रालय और गृह सचिव से जवाब मांगा था।